hem kumar hemesh   (✍️हेम कुमार हेमेश ©विशेष)
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Joined 16 March 2018


Joined 16 March 2018
2 JUN 2023 AT 21:43


ये आंखें अक्सर बयां करती हैं
अधूरे नींद , अधूरे ख्वाब ,अधूरे इंसान
और उसके संघर्ष की कहानी को ।।

ये हाथ बयां करती है
इंसान की वर्तमान कार्यशैली को
और उस उम्मीद की हस्त-रेखा को
जिस ओर इंसान बार बार देखता है जिससे
जीवन सुगम व सरल बनाया जा सके ।।

ये पेट है जिसमें भूख है
और जो मजबूर करती है, संघर्ष से लड़ने को
जो इंसान के समुचित जीवन की क्रिया-कलाप है।।

ये पाँव ,जिसपे इंसान जीवन के इस समर में
आखिरी दम तक खड़ा रहता है ,
और आखिरी दम तक आगे जाने की होड़ में
दौड़ता...दौड़ता...और दौड़ता ही रहता है।।

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15 JAN 2023 AT 18:42

मैंने अक्सर इस समाज मे देखा है
कुछ वक्त के लिए झूठ को जीतते
और सत्य को लंगड़ाते , झूलते , लटकते , भटकते और हारते !!

मैंने ये भी देखा है
झूठों के जीत के पक्ष में व्यापक रूप में प्रसार
लोगों का समर्थन , अहंकार , झूठी शान किंतु मुँह में राम
मैंने अक्सर ये देखा है !!

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26 JUL 2022 AT 21:32

ना जाने क्यूं , रात ही अपना लग रहा है हेमेश !

दिन तो अक़्सर रोटी कमाने में ग़ुज़र जाता है !!

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5 JUL 2022 AT 23:08



मैं बेवजह एक वज़ह के तलाश में हूँ !

जिसका पता नहीं उस लापता के तलाश में हूँ !!

जिंदगी एक अज़ीब मोड़ पे है !

फ़िलहाल मुसाफ़िर हूँ , मंजिल की तलाश में हूँ ।।

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21 MAY 2022 AT 22:51

बहुत इज़्तिराब सी रहती है , दिल में आजकल !

बीती शाम उसका ख़याल फ़िर से जो आया था !!

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18 MAY 2022 AT 0:04

वास्तव में मैं कुछ लिखता नहीं हूं
ये जो मेरे द्वारा पिरोये गए कुछ शब्द हैं
जिन्हें "कविता" की संज्ञा दी गई है ।।

इसके भीतर की प्रकृति को झाकों
ये ज़िन्दगी की एक हक़ीक़त को बयां करती है
जिनमें सिर्फ तुम हो !!

ये जीवन की एक स्मृति को भी बयाँ करती हैं
इस स्मृति को मैं सदैव जिंदा रखना चाहता हूँ
इसलिए मैं कुछ शब्द लिखता हूँ
जिसे पिरो कर
स्वतः एक कविता का निर्माण हो जाता है ।।

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16 MAR 2022 AT 0:01

दिल फेंक है - ज़माना -ऐ - आशिक़ी का

इसमें दिल किसका नहीं टूटा , तू ये बता !

मैंने अक्सर इस जमाने में इश्क़ को एक समझौता पाया है

तो इसमें तूने कौन सी ख़ता की हेमेश , तू ये बता !!


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9 JAN 2022 AT 13:36

उजड़ते गाँव व बंजर भूमि पे कुछ वक़्त गुजारो !

मालूम होता है कि शीशमहल बनाने वाले यहीं से गये हैं!!

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7 SEP 2021 AT 22:08

कई रात मैंने जाग़- जाग़कर गुजारा है !

इन आँखों के नींद को फूंक कर उड़ाया है ! !

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23 AUG 2021 AT 0:50

बदलते मौसम के साथ , बदल तुम रहे हो !

तो फ़िर , बेवजह वक़्त को क्यों "मुज़रिम" बना रहे हो !!

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