टूटते रहे वो जिसको इंसान बनाने में ,मिलते है आज वो बदहवास दौलत के मयखाने में। - हर्षिता की कलम
टूटते रहे वो जिसको इंसान बनाने में ,मिलते है आज वो बदहवास दौलत के मयखाने में।
- हर्षिता की कलम