11 DEC 2017 AT 20:46

माँ
जब भी वक्त मुझे भीगाना चाहता है ,
वो मेरी छतरी बन जाती है ,
सह सह के सारे दुःख
वो मुझे हँसाना चाहती है ।
जब भी कोई ऊँगली मुझे पर उठी
वो कोमल ममता की मूरत
मेरे वास्ते भद्र काली बन जाती है।
क्या लिखूं मैं उसके लिए
शब्दों की कमी पड़ जाती है,
और एक वो है जो मेरे लिए
दुनिया से भी लड़ जाती है ।

- हर्षिता की कलम