13 DEC 2017 AT 20:31

~ खिलौना जिंदगी का ~
जिंदगी हर पल मुझसे खेलती रही
और मैं बस खिलौना बन कर रह गया ।
बचपन में सबका प्यारा खिलौना था
पूरा परिवार मुझसे खुशी से खेलता रहा ।
जब बड़े हुए जज्बात लोगो से जुड़ने लगे
लोग मेरे जज्बातों से खेलने लगे।
मजबूरियों ने जब दामन थामा तो
तो रिश्ते ही हमारी मजबूरियों से खेलने लगे।
सफर के अगले पड़ाव में जब परिवार बसाया
तो सबके लिए अपने ही अरमानों से हम खेलने लगे।
जब पसीने ने मेरी दौलत कमाई
तो अपने ही मेरी दौलत से खेलने लगे।
जब हड्डियों में मेरी कमजोरी आयी
रिश्तें मेरे मुझे ही झेलने लगे ।
आज अंतिम घड़ियों में
सब उल्टी गिनती मेरी गिनने लगे
अब सब मेरी साँसों से खेलने लगे।
जिंदगी हर पल मुझसे खेलती रही,
और मैं बस खिलौना बन कर रह गया।

- हर्षिता की कलम