ना जाने कितने ही समंदर, पाले बैठी हूँ मैं अपने अंदर,तलाशने लगी जब गौहर, तो निकले कितने ही ख़ंज़र - व्योमांजलि
ना जाने कितने ही समंदर, पाले बैठी हूँ मैं अपने अंदर,तलाशने लगी जब गौहर, तो निकले कितने ही ख़ंज़र
- व्योमांजलि