Harshit Verma   (स्याह)
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राम राम जी
Joined 26 January 2018


राम राम जी
Joined 26 January 2018
29 APR 2021 AT 0:48

मानो मेरी बात ज़माना बहुत खराब है
मैं देखा हूं झेला हूं सो मुझे ऐतबार है
यूं वक्त को हाथो से ज़ाया न करो
यही तो दौलत है जनाब लुटाया न करो
हर पल खुद को मंजिल की याद दिलाना पड़े
इतना भी कमज़ोर खुद को बनाया ना करो
रातों को काला करके आए हो
सेवरों में उजाला भर के आए हो
मुश्किल लगा था तो क्या सोच कर चले आए हो!
आसान नहीं तुम जो करके आए हो
आसान नहीं तुम जो करने आए हो
ऐसा आसान क्या था जो तुम करके आए हो?

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29 APR 2021 AT 0:39

मसलन रात में कुछ रंग हों, सफ़ेद दाग का वर्चस्व भंग हो
ऐसा भी आये कोई दिन जहां में, सबके असल चेहरे बैरंग हों

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1 MAR 2021 AT 23:32

फिर तेरे ख्याल को ज़हन से धो दिया हमने
जो कुछ तू बाकी था सब रो दिया हमने

खैर इस इश्क ने कुछ दिया नही हमें
कुछ तुम्हे खोया कुछ खुद को खो दिया हमने

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10 NOV 2020 AT 23:55

उसके कच्चे घर में भी कुछ दीपक रोशन दिखें
इस दीवाली जो दुकान सबसे छोटी हो उसके भी कुछ सामान बिकें

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3 NOV 2020 AT 8:40

सुबह होती है किताबों के बीच
जिस उम्र में लोग माशूका के करीब हुआ करते हैं
बड़ी सुहानी लगती है कामयाबी की जुराब
अक्सर नीचे उसके छाले हुआ करते हैं

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23 APR 2020 AT 4:02

कटेगा वो सिर जो गुरूर से उठा होगा
तख़्त तो पलटतें हैं अदब में झुके ग़ुलाम

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23 APR 2020 AT 3:58

यूँ गिड़गिड़ाने से इश्क़ नही मिलता
खुद को भी कुछ कीमत अदा करो

लोग बड़े ही खुदगर्ज़ हैं, मिरी मानो
अपने ऊपर भी कुछ ज़हमत अदा करो

दोस्त आये थे यार, चले गए उनकी मर्जी
तुम ख़ुद से भी दोस्ती, दोस्त अदा करो

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22 APR 2020 AT 1:54

ठक गया हूँ, इंसानियत को मरते देख देख
कहीं ज़िन्दगी बची है क्या यार देख देख

ये हर तरफ जानवरों के झुंड क्यूँ हैं?
इंसान नीचे पड़ा होगा देख देख

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22 APR 2020 AT 1:21

सब ज़िन्दगी भर की खुशियां कमाने निकले
ये लम्हों की बेशकीमती हंसी छोड़कर

बड़े शहरों बड़ी इमारतों की मौत चाहिए
सब उसे खरीदने निकले ज़िन्दगी छोड़कर

अंजानो का शहर बड़ा खूबसूरत था
वहां छत बनाने निकले ज़मीं छोड़कर

लहरों ने उन्हें कुछ खेल दिखा दिए
वो समंदर से जा मिले नदी छोड़कर

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21 APR 2020 AT 3:28

कुछ कह कर करते हैं, कुछ बग़ैर कहे जाते हैं
ये दस्तूर बना है, जिसे जाना है चले जाते हैं

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