22 JUN 2017 AT 15:44

प्रेम-सद्भाव का जीवन सपन हो गया,
दिलों की खलिश में इंसा मगन हो गया।
आदमी बना आदमी का दुश्मन यहाँ,
गीत-संगीत सब कुछ ही दफन हो गया।

विधा-मुक्तक

- हर्षित "नमन"