16 OCT 2017 AT 14:33

दर्द अपना देख के तकलीफ पैर पड़ जाती हैं
अपनी हर खुशी उसके बिना कम पड़ जाती हैं

समझाता हूँ रोज अपनी सारी तन्हाई को मैं
उसकी कुछ बात ही मौत पे भारी पड़ जाती हैं

फूलों की खुशबू से हर बाँग हैं रोशन यहाँ यारों
अब तितली ना आके बैठे तो रौनक कम पड़ जाती हैं

चाँद सितारें जो कुछ भी हो तुमारे पास ले आओ
उसकी मुस्कुराहट तो सूरज पे बारी पड़ जाती हैं

हम सफ़र हैं हम एक दूसरे के पता है हमे भी
कुछ मजबूरी हमेशा चाहत पे भारी पड़ जाती हैं


अपनी कलम से HR B1 Pg 39

- ShayaR HR