Harsha Singh  
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अल्फ़ाज़ नहीं मैं जज़्बात लिखती हूँ ।
Joined 4 February 2017


अल्फ़ाज़ नहीं मैं जज़्बात लिखती हूँ ।
Joined 4 February 2017
27 MAY 2018 AT 4:14

तोड़ कर दिल.
चला गया जो.
वो हरजाई था.
जोड़ कर दिल.
नोच खाया जिसने.
उसे क्या नाम दूं?

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19 MAY 2018 AT 1:34

वाह रे मेघ, क्या रुख मोड़ा है.
बहाना तो देखो, कहते हैं पानी थोड़ा है.
जब थोड़ा था पानी तो घुमड़ कर आए ही क्यों.
जब बरसना ही नहीं था तो सावन के गीत गाए ही क्यों.
कभी तो बिन मौसम बरसते थे तुम.
कभी तो मुझे खूब भिगाते थे.
आज आंखे सूख गई मेरी राह तकते तकते
और तुम कहते हो कि आ नहीं सकते?
माना बंजर हो गई हूं, माना अब वो बात नहीं.
ना मैंने पुकारा था कभी, तुम भी कभी आए नहीं.
लेकिन आज आ जाओ, एक बार भिगा जाओ.
ये दिल अभी भरा नहीं.
ये दिल अभी भरा नहीं.





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22 APR 2018 AT 18:50

"किवाड़-ए-दिल.
ज़रा धीरे से खड़काना मेरी जान,
एक ज़माने से बंद है. टूट जाएगा"

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22 APR 2018 AT 16:02

"धूप सी बिखरी और दिनकर सी चमक उठी मैं"

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8 APR 2018 AT 2:16

तुम उस चाँद की तरह अकेले ही मिलना मुझसे,
मैं बादलों सी आकर, तुम्हें गले से लगाकर
जी भर के रोउंगी.




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25 MAR 2018 AT 1:32

बेबसी में लिपटी उन यादों से लिपट कर सो जाते हैं.
कैसे भूलें तुझे बता?
हम तो तेरे नाम में ही सिमट कर ख़त्म हो जाते हैं.

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21 MAR 2018 AT 18:28

"इन आँसुओं से तेरी मेरी कहानी लिख रही हूँ
पढ़ने ना सही, मिटाने के लिए तो आ"

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21 MAR 2018 AT 0:21

दिल-ए-लाचार की नादानी तो देखो.
ख़्वाहिश उसेे पाने की और कोशिश भुलाने की.
यह दिन-रात करता है.

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6 MAR 2018 AT 23:24

ना-तमाम वो लफ़्ज़ तेरे
दर्द तमाम दे गए।
आज फिर कुछ बीते लम्हे
दूर से सलाम दे गए।






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28 FEB 2018 AT 2:05

वो पल तो आज भी हैं.
उनका ज़िक्र नहीं. तो क्या हुआ.
मैं याद तो उसे आज भी हूँ.
मेरी फ़िक्र नहीं. तो क्या हुआ.

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