वाह रे मेघ, क्या रुख मोड़ा है.
बहाना तो देखो, कहते हैं पानी थोड़ा है.
जब थोड़ा था पानी तो घुमड़ कर आए ही क्यों.
जब बरसना ही नहीं था तो सावन के गीत गाए ही क्यों.
कभी तो बिन मौसम बरसते थे तुम.
कभी तो मुझे खूब भिगाते थे.
आज आंखे सूख गई मेरी राह तकते तकते
और तुम कहते हो कि आ नहीं सकते?
माना बंजर हो गई हूं, माना अब वो बात नहीं.
ना मैंने पुकारा था कभी, तुम भी कभी आए नहीं.
लेकिन आज आ जाओ, एक बार भिगा जाओ.
ये दिल अभी भरा नहीं.
ये दिल अभी भरा नहीं.
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