5 NOV 2017 AT 0:15

दो अठन्नी से दोस्ती शुरू हुई थी हमारी। स्कूल कैंटीन में समोसे खरीद रहे थे हम दोनों। अठन्नी दो, लेकिन समोसा एक। तुमने ज़िद्द कर खुद के लिये खरीदा था। मेरा लटका मुँह देख तुमने वो समोसा तोहफे में मुझे सौंप दिया। मैंने आनाकानी की थी पर पेट में दौड़ते चूहों ने मानो भूख का एक ज़बरदस्त तूफान भेज दिया था। कुछ सोचे बगैर आधा समोसा मैं गड़प कर बैठा। तभी मैंने तुम्हारा चेहरा देखा। मायूस सा। फिर क्या था, तुम्हारा समोसा वापस। आधा अधूरा। हमारी दोस्ती जैसा।

अगले दिन फिर वही कैंटीन, फिर वही दो अठन्नीयां। लेकिन समोसे अनगिनत। आज कोई लड़ाई नहीं। काश होती। हम दोनों अपना अपना समोसा ले नज़दीक की बेंच पर विराजमान। लेकिन वो मज़ा नहीं जो पिछले दिन था। बाँटने का। एक नज़र अटकी, एक मुस्कान उमड़ी। दोनों के हाथ मे आधा समोसा। आधी दोस्ती। पूरी करने का एक ही तरीका। गड़प, एक दूसरे का।

- हर्ष स्नेहांशु