Hanuman s Meena  
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Joined 11 August 2019


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Joined 11 August 2019
23 AUG 2020 AT 21:27

कुछ तस्वीरें लें लुऀ,
कोरा कागज़ है
जिंदगी रंग भर लुऀ।
जा रही है सुरज कि तरह,
कुछ सफर को साथ ले लुऀ।

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23 NOV 2019 AT 14:43

जो ज़मीर बेच खाता है,
वो फिर कुछ भी खा जाता है।
वतन धर्म ऐ सब तो रूप है,
असल में इंसानियत बेच खाता है।।
हनुमान सहाय मीना

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22 NOV 2019 AT 4:40

#banevm
वो गरजा इतना,
कि बरसना भुल गया!
दुसरो में झांका इतना,
कि खुद में झांकना भुल गया।।
भांग गांजा अफीम,
का भी नशा नहीं इतना।
मशीन के नशे में उसका,
नशा ही उतरना भुल गया।।
वो कहता फिरता है
अपने आप को महान इतना।
बिना मशीन की बात कही,
वो बौखलाहट में बात ही भुल गया।।
हनुमान सहाय मीना

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19 NOV 2019 AT 7:37

#jnuprotests
नदी की राह,
तोड़ मरोड़ देना चाहता है।
हवा को तुफान कर,
चराग बुझा देना चाहता है।
राष्ट्रवाद का राग अलापने वाला,
राष्ट्र की शान मिटा देना चाहता है।
हंस बना फिरता था,
गिरगिट भी शरमाना चाहता है।
आंसु गैस गोले पानी की बौछार ही नहीं,
वो अब अन्तिम कतरा भी पीना चाहता है।
हनुमान सहाय मीना

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4 NOV 2019 AT 16:12

पीढ़ियों ने सदियों तक मांगा चुन,
फिर वतन चुन चुन कर दिया।
धर्म की अफीम पिला पिला,
वतन का खुन पी गया।।

गा गे गु गो हैं बहुत पसंद,
इसी से उसका धंधा चलता।
नफ़रत का करता वो व्यापार,
इंसानों को बांट बांट कर खाता।।

संविधान से वो करता नफ़रत,
शिक्षा पर एकाधिकार समझता।
जो भी करें हक की बातें,
उसे ही वो दुश्मन समझता।।

पीढ़ियों तक में ना कोई युद्ध लड़ा,
ना कभी जल जंगल जमीन बचाऐ।
सारे अपराधों की जड़ ही खुद को,
देखो भगवान बताएं देखो भगवान बताएं।।
हनुमान सहाय मीना

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25 OCT 2019 AT 16:33

मेरे दिल में गलियां ही गलियां हैं,
सच कहूं तो गलियों का अजायबघर हैं।
तु महसूस तो होती है,
मगर तेरी गली मिलती नहीं है।।

तेरी यादें ही यादें ताजा हो आती है,
अब जीने नहीं देती है।
पता नहीं किस गली से निकलती है,
सारे दिल को धड़काती है।।

चोरनी दिल के किस कोने में है छुपी,
तेरी गली का पता तो बता।
वरना तुझे दिल से निकालने के लिए,
इसे और  कितना तोड़े बता।।

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23 OCT 2019 AT 18:49

खुद को कब तक,
खुद और समाज से छुपाओगे।
आज जो सोच रहे हो,
कल वहीं बन जाओगे।।

हनुमान सहाय मीना

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20 OCT 2019 AT 14:55

मैंने कभी नहीं मारी,

पर जमाना बोलता है।

मेरे अपने भी बोलते हैं,

कि मैंने बहुत मारी।
पर
मैं विश्वास दिलाता हूं,

मैंने कभी नहीं मारी।

मैंने बिल्कुल नहीं मारी,
मैंने झक नहीं मारी।
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8 OCT 2019 AT 20:18

शोहरत की भुख,

कलम खा गई।

वतन में सदियों,

जिसने इंकलाब बोया था
हनुमान सहाय मीना
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6 OCT 2019 AT 13:06

वो कर रहे थे इंतज़ार,

समय बदलने का।

मझधार में समय की कश्ती को था इंतज़ार,

हवा के रुख बदलने का।।

हनुमान सहाय मीना
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