अभी शाम हुई नही थी,
ये उससे पहले का वक़्त था,
जैसे मरने से पहले एक इंसान में थोड़ी सी जान बाकी होती है,
ठीक उतनी ही जान बाकी थी दिन में,
सर्द गर्म साँसों की कॉकटेल बह रही थी,
और हर उस आखिरी साँसों के साथ वो बहोत कुछ कहना चाह रही थी,
कहना चाह रही थी-
अपनो को खोने और पाने की कहानी,
अपने जीवन के संघर्ष की कहानी,
बादलो से खुद के हार जाने की कहानी,
और फ़िर उसी बादलों को चीर कर विजयी होने की कहानी,
किसी रोज़ अपने टूट जाने की कहानी,
औऱ फिर इसी बीच साँसे तेज़ होने लगी,
आवाज़ टूटने लगे
जो आसमां अभी सुनहरे पीले रंगों का था,
अब नारंगी होने लगा, नारंगी से लाल
और लाल से नीला हुआ और फिर ठहर गई,
शाम अब सब कुछ त्याग कर क्षितिज में लुप्त हो गयी और फिर सब कुछ महताब के नाम कर गई..
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