वाक़िफ़ लगते हो पत्थरों की चुभन के तुम,यूँ ही नहीं कोई नंगे पाँव चला करता है यहाँ... - गुँजन माथुर (खुली किताब ज़िन्दगी की)
वाक़िफ़ लगते हो पत्थरों की चुभन के तुम,यूँ ही नहीं कोई नंगे पाँव चला करता है यहाँ...
- गुँजन माथुर (खुली किताब ज़िन्दगी की)