22 FEB 2018 AT 20:09

वाक़िफ़ लगते हो पत्थरों की चुभन के तुम,
यूँ ही नहीं कोई नंगे पाँव चला करता है यहाँ...

- गुँजन माथुर (खुली किताब ज़िन्दगी की)