Gunjan Mathur   (गुँजन माथुर (खुली किताब ज़िन्दगी की))
48 Followers · 40 Following

Joined 7 February 2018


Joined 7 February 2018
1 JAN 2023 AT 10:38

तेरे पाक-ए-रूह की तारीफ़ अब करें भी तो क्या,
ख़ुदा से भी तेरी जो सौदेबाज़ी हो गयी,
और झुकीं थी निगाहें तेरी जब नज़ाकत में,
रहमतें अता भी तो बेशुमार हो गयीं,
और सजदे में सर झुकाया था तूने जब,
जन्नत से क़बूल तमाम दुआएँ हो गयीं,
और एक अरसे से प्यासी थी ज़मीन मेरे वतन की,
जो खुली बाहें तेरी तो कतरा कतरा आब भी गाफ़िल सैलाब हो गयी।

-


14 JUN 2020 AT 17:55

बंद दरवाजों के पीछे मौजूद कुछ सन्नाटे हैं,
उन सन्नाटों की आवाज़ क्या सुन पाते हो तुम?
मुस्कान काफी खूबसूरत है उनकी,
क्या उसके पीछे की चीख़ सुन पाते हो तुम?
जो हर वक़्त मशगूल है हँसी ठिठोली में संग सभी के,
क्या दर्द उसके सीने के जान पाते हो तुम?
वक़्त की कमी है पास सभी के,
क्या पल कुछ किसी के लिए निकाल पाते हो तुम?
जो हर दिन जीता है सिर्फ मर जाने की लिए,
क्या उसके ज़िन्दगी जीने का हौसला दे पाते हो तुम?

-


1 APR 2020 AT 12:00

हालात-ए-जंग-ए-ज़िन्दगी से थक चुके, चल आराम फरमाते हैं,
ऐ ज़िन्दगी साथ चल, आज तुझे जीते हैं...
दिन भर की भागदौड़ से चल कुछ लम्हे चुराते हैं,
ऐ ज़िन्दगी साथ चल, आज तुझे जीते हैं...
कुछ तेरे, कुछ मेरे , चल कुछ सपने संजोते हैं,
ऐ ज़िन्दगी साथ चल, आज तुझे जीते हैं...
ज़िम्मेदारियों के नीचे दबी वो बचपन वाली हँसी ढूंढते हैं,
ऐ ज़िन्दगी साथ चल, आज तुझे जीते हैं...
चल कहानियों की किताब से धूल झाड़ आज उसको पढ़ते हैं,
ऐ ज़िन्दगी साथ चल, आज तुझे जीते हैं...
किनारे सागर के बैठ कर चल गोते यादों के लगाते लगाते हैं,
ऐ ज़िन्दगी साथ चल, आज तुझे जीते हैं...
जो केवल कट रही थी अब तक, चल उसे बदलते हैं,
ऐ ज़िन्दगी साथ चल, आज तुझे जीते हैं...

-


23 DEC 2019 AT 21:09

ऐ ज़िन्दगी, अब मुक़म्मल जहां नसीब कर...
थक गया हूँ मैं, दर बदर भटकते भटकते...

-


22 OCT 2019 AT 21:49

महफ़िलें ख़ामोश रहती हैं आजकल मेरी,
कि शोर लफ़्ज़ों का अब किताबों में क़ैद है...

-


16 OCT 2019 AT 0:17

लोग कहते हैं कि वक़्त
थमता नहीं कभी किसी के लिए,
लगता है उन्हें दीदार कभी तुम्हारी
“मुस्कुराहट” का नहीं हुआ...

-


6 AUG 2019 AT 13:20

दोस्ती के रिश्ते में तुम,
ये कैसा “हिसाब” ले आये...
ये सफ़र है एक-दूसरे की ज़िन्दगी का,
कोई ऐसा-वैसा “सौदा” नहीं...

-


4 AUG 2019 AT 13:09

कैसे, मतलब कैसे कर लेते हो तुम ख़्वाहिश चाँद की,
जब तुम्हारी अपनी शख़्सियत ही है अमावस्या की...

-


3 AUG 2019 AT 18:41

राख औढ़ा कर छुपा रखा है मैंने
आज भी जलते हुए कुछ अंगारों को,
कि शिकायतें हैं कुछ आज भी
जो कभी किसी से बयान नहीं हुईं...

-


3 AUG 2019 AT 2:55

वो हैरान परेशान खड़ी रही,
ज़माने में तमाम तकलीफ़े अपनी ले कर...
दो बोल प्यार के बोल दे जो दिल की गहराई से,
पूरी महफ़िल में वो किरदार कहीं नहीं मिला...

-


Fetching Gunjan Mathur Quotes