क्या हैं ज़िन्दगी।
कभी खो जाती है,कभी मिल जाती है।
कभी रो पड़ती है,कभी खिल जाती है।
मेहमान भी तू,अन्जान भी तू।
खो कर भी मेरी,पहचान भी तू।
सत्य में तू,असत्य में तू।
कांटो भरे हर पथ्य में तू।
मेरी वाणी में दिल में भी तू।
कभी मस्ती भरी महफिल में भी तू।
राधा में बसती है,कृष्ण में भी तू है।
हर अधरों की मुस्कन में भी तू है।
फिर क्यूं दूर है मुझसे ज़रा समझा दे।
कब मिलेगी मुझसे वो दिन तो बता दे।
तेरे भी खेल निराले हैं।
बता कब हम मिलने वाले हैं?
- Gobind Vinit