"वे आंखें "
पंजाब मेल का जनरल कम्पार्टमेन्ट
अनगिनत लोगों की भीड़ के बीच
सीट के एक कोने में दुबकी,सहमी सी
लोगों की निगाहों से खुद को छिपाती
आठ-दस साल की मासूम बच्ची
झील सी गहरी आंखों में उदासी की परत
चेहरा मासूमियत का पर्याय
याद आया, देखा है, इस चेहरे को कहीं
हां, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ
आंदोलन की पोस्टर गर्ल ही तो है वह
नहीं भूलतीं आंदोलन को मुंह चिढ़ाती
उसकी वे उदास आंखें
मानो कह रही थीं
बेटियों को पढ़ाना बाद में
पहले उन्हें बचा तो लो
ज़माने की वहशी निगाहों से।
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