गायत्री गुप्ता  
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Joined 16 May 2017


Joined 16 May 2017

जब भी लिखना चाहा तेरे बारे में
तब तब आंख मेरी भर आती है
हर्फ धुंधले हो जाते है ख्यालों में
यादें दर्द के सैलाब से भर जाती हैं

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हासिल तो वो कभी हुआ ही नहीं
लेकिन,वो क्या जाने
खोया तो उसे हमने आज भी नहीं

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कुछ तो बिखरा-बिखरा सा है
शायद ख्वाब,ख्वाहिश या फिर मेरा दिल

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लिखते हुए हम अपने
उन लम्हों को भी जी लेते हैं
जिन्हें जीते जी हम कभी जी नहीं पाए!

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मुझे यकीन है मिजाज तेरा भी बदलेगा
जब कभी तू खुद के भीतर गहरे में उतरेगा

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जाने वाले को रोका नही जा सकता
मोहब्बत तो रिश्ता है नाजुक से अहसास का
जिसे जबरदस्ती जोड़ा नही जा सकता ।।

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एक शाम और ढल गई,तुम्हारी चिठ्ठी के इंतजार में
अब सुबह तलक चलता रहेगा कारवां बिखरी हसरतों का

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मुद्दतें गुज़र गयी
उस गली उस शहर को छोड़े हुए
ना जाने क्यों
आज जहन में एक हूक सी उठी
रूठकर वो शायद गया ही न हो....

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तुम्हारी फिक्र के लिए हमारा
कोई रिश्ता हो ज़रूरी तो नहीं

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समय बदल गया,
बातें बदल गयी
बदल गई कायनात भी
बस... !! बदली नहीं
तो दो चीजें प्रिये
एक आँखों की नमी
और दूसरी तुम्हारी कमी !!

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