गौरव जैन   (गौरव जैन)
248 Followers · 244 Following

पत्रकार, विचारक, लेखक, आलोचक, ट्रैवलर
Joined 23 December 2016


पत्रकार, विचारक, लेखक, आलोचक, ट्रैवलर
Joined 23 December 2016
3 DEC 2021 AT 23:22

जीवन के दुखों से ज्यादा,
ज़ेहन के दुख त्रासते हैं।

-


20 MAY 2020 AT 23:50

मौत को देखा, मौत के भी करीब से,
ऐसा नसीब मिलता है, नसीब से।
माहौल का क्या था, बनाए रखा,
नहीं मिल पाए तो खुद, खुद के रक़ीब से।

हम ने मुसलसल मुलाकातों की कोशिशें की,
वो जाते रहे दर पर मेरे रक़ीब के,
हमारे सितारे गर्दिश में आते आते रह गए,
हम मान बैठे रहे कोने में गरीब से।।

यूँ तो इन आंखों ने देख ली है दुनिया काफी,
पर इन्हें पीने हैं जाम उनकी आंखों से प्रीत के,
गो कि आंखें एक दिन रह ही जाएंगी पथरा के,
तब तक रहेंगे हम इनमें आंसू सींचते।

-


6 MAY 2020 AT 4:41

पता है,
दिल तब नहीं टूटता जब छोड़ कर जाती है कोई प्रेमिका अपने प्रेमी को,
या किसी की चाहत, अपने रक़ीब की डोली में बैठ विदा हो जाती है।

दिल टूटने की आवाज पूरी कायनात में गूंजती सुनाई देती है तब, जब आपने उठाये हों सड़क पर गिरे कई नौजवान, असहाय, बूढे,
और आपके गिरने पर, बस कुत्ते चाटने आयें आपका लहू।

-


18 MAR 2020 AT 13:29

तुम्हारी फितरत के बारे में कर लेंगे बात औरों से,
खामियों का ज़िक्र खुद से भी ना करेंगे कभी।

-


9 JAN 2020 AT 0:26

मुझे लिखने हैं बहुत सारे पत्र,
हर रिश्ते के लिए,
माँ, बाप, बहिन, भाई, प्रेमिका, दोस्त;
सबको, मतलब सबको;
और कुछ पत्र उनको भी,
जिनसे मैंने कभी मन से बात तक ना की,
और बहुत से उनको जो ना प्रेम हुए ना दोस्त हुए।

कुछ या बहुत से पत्र लिखने हैं,
बिना पते और बिना अभिवादन के,
बहुत सारी लड़कियों और बहुत से दोस्तों को,
जिनसे बहुत कुछ कहा नहीं जा पाया,
क्योंकि उनमें होंगे बस अहसास और जज्बात,
और वक्त के साथ ढूंढ ही लेंगे वो लोग,
उन पत्रों को,
जिनके लिए लिखे गए हैं वो पत्र।

-


5 JAN 2020 AT 23:10

जिंदगी की गाड़ी भागती रही,
खुशियां मनाई, ढोते रहे गम।
बहुत से लम्हे हमारे ना हुए,
बहुत से लम्हों के ना हुए हम।

-


8 JUN 2019 AT 6:47

"बहुत है"
सुबह तक जब आंखें जागीं,
चला पता रात स्याह बहुत है।
चाहते हुए जब नींद ना आई,
लगा पलकों में विवाद बहुत है।
अक़्सर रातें जगकर काटीं,
कहीं रुका इजहार बहुत है।
गईं जो रातें! वो ना लौटेंगी,
अब तो ये मलाल बहुत है।

-


16 APR 2019 AT 0:50

जो नहीं हैं पूर्वाग्रह से युक्त,
उनकर भरपूर किया जायेगा उपयोग,
कलाएं हो जाएंगी लुप्त,
पंथों के पाटों में पिसकर,
देते रहेंगे दुहाई, अपेक्षित,
किनारे वाले विवेकी मनुष्य,
और क्षणिक उन्मादों से घिरे रहेंगे,
खुश हो लेंगे,
अरसे बाद मिले एक और किनारे वाले मिलकर।
बढ़ता रहेगा कारवाँ, अविवेकी,
सुसुप्त, तथाकथित जाग्रतों का,
और किनारे वाले रहेंगे हमेशा,
किनारे, किनारे और किनारे।

ग्वालियर ११/०३/२०१९

-


16 FEB 2019 AT 1:21

है बहुत कुछ,
जो महसूस किया जाता है।
ये बात और है कि,
जो परिभाषित है;
वही समझा जाता है।

-


29 JAN 2019 AT 18:35

रंजिशों की फ़ेहरिस्त,
कुछ यूं बढ़ती रही,
जिनका खुद से हाल पूछा,
उनको बात चुभती रही।

-


Fetching गौरव जैन Quotes