मैं वो नदी तो नहीं जो आवारा सा बहता जाऊ वो आज़ादी भी नहीं कि कहीं भी मुड़ जाऊ मेरा कोई सागर भी नहीं जिससे मिलने जाऊ चार दीवारी के भीतर की तरह मैं महज एक तालाब नसीब में न सागर हैं ना मुझ पर लिखी कोई शायरी है कुछ हैं तो चारो तरफ से घेरे मुझे ये किनारें ।