मिली हो क्यों तुम इतना लेट
दो कौड़ी की दुनिया के भी बढ़े हुए हैं रेट
मिली हो क्यों तुम इतना लेट
जिनको पलकों पर रखते थे वही बने नासूर
जिनको ख़ुशियाँ लाकर सौंपी करते हमको दूर
जिनको माना ईश्वर, माना कथन सदा आदेश
उनकी बातों पर जाने क्यों खोता अब आवेश
उनकी चाह है भूखा रखना ख़ुद खाकर भरपेट
मिली हो क्यों तुम इतना लेट
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