मिट्टी ने दिया वो सब, जो पहचान बना हमारी मिट्टी की ही परवरिश में, उज्ज्वल हुआ संसारी उसी मिट्टी के रक्त से, अब सना हुआ है प्राणी मान जा, तू वक़्त रहते, साफ करले चोली.....
वृक्षों से सीखा है हमने, कैसे परहित का सुख लेना.. जीवन के हरेक कदम पे, कैसे अपनों के संग रहना.. प्रेम सूत्रके धागे को, किस प्रकार सहेजकर रखना.. हठी, मूढ़ी इस चंचल मन को, निर्मल और निश्छल बनाकर रखना..
तस्वीर.. एक बूढ़ी माँ की नई तकनीकि के साथ काम करने की..
तस्वीरों के खेल में न उलझिये, सच्चाई! इसे पाने में ज़िन्दगी खुद बीत जाएगी। कोशिश तो की थी... उस माँ को चैन की नींद देने की, देख उसको फिर ऐसे आँखें भर आएँगी।।
किसी ने कागज़ के टुकड़ों का मोल है आँका (धन).. तो किसी ने मदद और ख़ुशी का सुख औरों को बाँटा.. ज़िन्दगी कह चली सभी से ये फ़कीरा... इंसानियत के रंग ने सबको प्रेम से है सँवारा..
ख़ुदा ने बक्शी है जन्नत बच्ची के रूपसा पिता के प्रेम से उसने सँवारा है रंगसा.. कुछ कमी भी होती गर उसकी छाओं में भर देता वो उसे माँ के सम्पन्न आँचल से..