कृष्णवत्सल   (कृष्णवत्सल)
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👉शोधत आहे स्वतःलाच, स्वतःसाठी 👈
Joined 12 September 2017


👉शोधत आहे स्वतःलाच, स्वतःसाठी 👈
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हसऱ्या चेहऱ्यामागे दुःख लपवून ठेवणारे जीवनात कधीच हार मानत नाहीत..

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शब्दों के खेल में,
शब्दों की जाल मैं,
शब्दों से लिप्त मैं,
शब्दों से अलिप्त मैं...।।
शब्दों के साथ में,
शब्दों से निस्वार्थ मैं,
शब्दों के अर्थ में
शब्दों से अनर्थ मैं...।।
शब्दों के रंग में,
शब्दों से बेरंग मैं,
शब्दों की चाहत में,
शब्दों से बेचाहत मैं...।।
शब्दों के आधार में,
शब्दों से निराधार मैं,
शब्दों के आलाप में,
शब्दों का विलाप मैं... ।।
शब्दों के संग मैं,
शब्दों सा निखरता मैं,
शब्दों की गूंज में,
शब्दों के पार निशब्द मैं..।।

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प्रत्येक प्रश्नाला उत्तर असलेच असं नाही, कित्येक प्रश्न ही उत्तर म्हणून च मांडलेली असतात.

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दर्द तकलीफ देती हैं और तकलीफ उस दर्द को सहने ताकद.

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'प्यार' एक साधना हैं,
कर पाए तो 'भक्ति' हैं,
समझ गए तो 'शक्ति' हैं,
उसमे डूब गए तो 'मुक्ति' हैं,
जिसके प्यार का रंग 'कृष्ण' हैं,
वही 'राधा' हैं, वही मीरा हैं ।।

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घायाळ करुनी गेलीस मज,
हृदय का घेऊन गेलीस ।
स्पर्श करून गेलीस मज,
मन चोरून का गेलीस ।।

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वह कभी न डर था,
जो मुझे डरा रहा था,
वह तो मेरा वहम था..।।

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शून्यातून शून्य वजा केल्यास शून्यच राहते.

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had many scattered memories which are irreparable now.

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शून्यातूनच निर्मिती होते 'पूर्ण'तेची..!!

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