मुक्त नीति मुक्त श्रुति मुक्तता में लीन चेहरे, कैद में है द्वेष की अवसाद में गमगीन चेहरे! कुंठित कुछ संकीर्ण चेहरे कुछ कुंठा से भिन्न चेहरे, शापित सोच - हीन चेहरे मुक्त भाव - शालीन चेहरे!
खिलखिलाते आसमां और मस्त लहरों पर अभिमान कर मेरा स्वप्न तू , मेरा अंश है मुस्कुरा, गुमान कर !! धुरी मेरे विश्वास की तू ही, जीने की वजह स्नेह मेह की तू ज़मीं सर उठा, कमाल कर !!
कभी बहुत शिकायतें थी ज़िंदगी से, ज़िंदगी के कुछ हिस्सों से, इसका हिस्सा रहे कुछ लोगों से.. जो शिकायतें अब नहीं हैं, माफ़ करना सीख गई हूँ शायद.. एक सवाल था कि मैं ही क्यूँ?? अब समझ आता है, मुझे सिखाने का सृष्टि का ये अपना तरीका था और शायद यही बेस्ट था.. :)