ये बुरा वक़्त जब आता है ना तब कई भ्रम टूटते है। अपने करीबियों के रिश्ते-नातों के चेहरे से झूठे प्रेम और अपनेपन के नक़ाब हटते है। ऐसा लगता है ना कितना कुछ था जो साथ लेकर चलती थी सबके दुख मे दर्द मे सबकी साथी बनती , दुसरो के दर्द को उन्हीं की तरह महसूस करती, सबके लिए परेशान रहना सबके लिए सोचना उनकी फ़िक्र करना जैसे मेरी आदतों में शामिल होता था.... जब मुझे जरूरत रही तब मै साथ ही ढूढ़ती रह गई.... अपने आँसुओ को समेटकर अंदर ही अंदर घुटती गई.... कितना कुछ है जिसे हम साथ लेकर अपना हक जताकर जिन्हे अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाकर आगे बढ़ते है लेकिन असल मे वो कुछ भी अपना नहीं होता केवल एक भ्रम होता है..... बुरे वक़्त में केवल लोगो के चेहरे से नक़ाब नहीं हटते, हटता है वो अंधापन जो हम ना जाने कबसे अपनी आँखों मे लेकर चले आ रहे थे।
-