सोज़, जफ़ा, ख़लिश, अज्जियत, आह-ओ-ज़ारी..सहरा-ए-तमन्ना मे रुस्वा इज्तेराब था..पिंदारे मुहब्बत कहो या कहो बेख़ुदी-ए-शौक..इस गर्दिशे अय्याम मे वो ही कफ़े-सय्याद था.... - Dronika
सोज़, जफ़ा, ख़लिश, अज्जियत, आह-ओ-ज़ारी..सहरा-ए-तमन्ना मे रुस्वा इज्तेराब था..पिंदारे मुहब्बत कहो या कहो बेख़ुदी-ए-शौक..इस गर्दिशे अय्याम मे वो ही कफ़े-सय्याद था....
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