8 MAY 2018 AT 6:50

जुल्फ़ों की सरगोशी...
लबों की खामोशी...
नफ़स में तेरी ख़ुशबू...
और वो दस्त बोसी...
कुछ तो बाकी है, अभी भी तेरे मेरे दरमियां...

तेरे जिस्म की निकहत...
तेरी वफ़ा-ओ-उल्फ़त...
तेरे इश्क़ की सदाकत...
और तेरी मोहब्बत में मेरी मश्गूलियत...
कुछ तो बाकी है, अभी भी तेरे मेरे दरमियां...

तेरी शौके-आराइश...
मेरे इश्क़ की आजमाइश...
तू मेरे लिए किसी हुमा सी...
और मुझे तुझे पाने की ख़्वाहिश...
कुछ तो बाकी है, अभी भी तेरे मेरे दरमियां...

तेरी सदा जैसे हजार दास्तांँ...
तू मेरा माहताब मैं तेरा आसमां...
तू मेरे लिए बसंत की सहर...
और तेरे बिना मेरी हर सांझ जैसे ख़िज़ाँ...
कुछ तो बाकी है, अब भी तेरे मेरे दरमियां...

और ये जो कुछ, जो थोड़ा ही सही...रहेगा ही... हमेशा तेरे औंर मेरे दरमियाँ....

- Dronika