28 AUG 2018 AT 19:20

जब से तू रूबरू नहीं होती....
जाने क्यों तेरी जुस्तजू नहीं होती....
आकर समा भी जाये आगोश में मिरे....
पर अब तेरी आरजू नहीं होती....

तेरी तिश्नगी भी दरिया सराब जैसी है....
मेरी हालत ख़ाना ख़राब जैसी है....
अब तो तर्के-मरासिम का भी गम नहीं है मुझे....
तू मेरी ही रहती गर बे-आबरू नहीं होती....
जब से तू रूबरू नहीं होती....

वादा-ए-फ़र्दा पर अब ऐतबार नहीं होता....
इस जहां में हर कोई ग़मगुसार नहीं होता....
मैं कम आमेज़ ही रहता गर तुझसे ना मिलता तो....
महफ़िल जमाने की सब की ख़ू-बू नहीं होती....
जब से तू रूबरू नहीं होती....

ना-पुरसा है कोई और ना हीं पासे-हमराहा है....
दरीदा-लिबास हूं, ना साथ में साया है....
मेयारे-वफ़ा से कोई वास्ता तो रखना था....
हर फूल की किस्मत में क्यों खुशबू नहीं होती....
जब से तू रूबरू नहीं होती....
जाने क्यों तेरी जुस्तजू नहीं होती....

- Dronika