अच्छा सुनो ,
लोग पूछते है अक्सर की क्या लगती हो तुम हमारी , क्यूँ हम तुम्हारे बारे में इत्ते हक़ से लिखते हैँ , बस मुस्कुरा कर रह जाते हैं जवाब नहीं दे पाते है हम उस वक़्त इसलिए शायद की अभी हम खुद इस उधेड़बुन मे है कि तुम हमारी लगती क्या हो आखिर .....???
ख़ैर ये तो पता है हमें कि ये रिश्ता दोस्ती से बढ़ कर है , पर इस रिश्ते को नाम देने से डरता हूँ !
डरते है कि कही तुम बदनाम ना हो जाओ हमारे कारण यूँ वे वजह ..... इस बात से भी डरता हू कि नाम तो जोड़ दूँगा तुम्हारा अपने से पर क्या इस रिश्ते को उसके अंजाम तक पहुंचा भी पाऊंगा ??
सहम जाता हू ये सोच के कि ये रिश्ता बस दोस्ती का बन के रह गया तो , तुम किसी ओर कि हो गई तो ??
जब भी ये सब सोच के हारा हुआ महसूस करता हूँ , तो तुम्हें तुम्हारी बेपरवाह भरी हँसी के साथ ये कहते हुए सामने खड़ा पाता हूँ " यार चिल्ल करो! हम कहीँ नहीं जा रहे हैं हम बस तुम्हारे है और तुम्हारे ही रहेंगे !
कुछ चीज़ों कि अहमियत शायद, उसके ना होने से ही होती हैं!
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