Divyansh Singh   (Thakur Sahab)
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....कलम से उल्फत मेरी 💕
लखनऊ , उ.प्र. 🙏
I'm here just to write my thoughts. 📝
Joined 3 April 2018


....कलम से उल्फत मेरी 💕
लखनऊ , उ.प्र. 🙏
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Joined 3 April 2018
8 NOV 2019 AT 14:29

मेरी मौत को तुम बदनाम कर दो...
आज फिर से मेरा कत्ल-ए-आम कर दो...
हवाएँ दरमियाँ रहें ना रहें, क्या ग़म है...
मैं नहीं हूँ अब, ये सरेआम कर दो...

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26 OCT 2019 AT 17:03

बार बार मारोगे भी तो क्या होगा...
फिर निकल आएगी रूह राख से...

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12 OCT 2019 AT 11:38

ये गुस्सा हमें वसीयत में मिली है...
मगर हम अक्ल का सौदा क्यूँ करें...
वो होंगे फरेबी तो होने दो उन्हें...
इश्क़ को अपने हम झूठा क्यूँ करें...
मुकद्दर है ख्यालों में परेशान रहना...
ये जान कर हम उनको सोचा क्यूँ करें...
अब फ़स्ल-ए-बहार की रुख़ बदल गयी है...
मायूसियों से फिर हम सौदा क्यूँ करें...


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3 OCT 2019 AT 23:25

विसाल-ए-यार की एक चाह थी मुझको...
उनके तीर-ए-नीम-कश की याद आ गयी...
ग़म-गुसार नहीं, ग़म में डुबोने को थे...
जाँ-गुसिल सी अदबी की याद आ गयी...
मैं बुरा हूँ, मैं चारासाज़ भी हूँ...
मैं एक टूटे मयखाने का बादा-ख़्वार भी हूँ...
मैं याद हूँ मेरे दिल को बेशतर मगर...
कि महफिल में एक पराए की याद आ गयी...
एक शाम कभी बैठो तो रू-ब-रू मेरे यारों...
गिला-ए-मलामत-ए-अक़रिबा अब याद आ गयी...


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22 SEP 2019 AT 20:00

मुझको खुद के कत्ल से अब डर लगता है...
इस तलख़ी से मेरे लफ़्ज़ों को अब डर लगता है...
मैं खुद हूँ तो बहोत ही शरीफ...
मुझे मेरे शरीफ होने से अब डर लगता है...
क्या हुआ साहब, चार बात ही तो बोलीं है...
मगर सबको मेरे बातों से अब डर लगता है...
वो जाएंगे दूर तो जाने दूँगा उन्हें...
उनको, मेरा पास होने से अब डर लगता है...
अब कुछ बोलूंगा भी तो वो चिढ़ जाएंगे...
ऐसे में खुद के कत्ल से अब डर लगता है...

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14 SEP 2019 AT 19:20

ऐसे दर्द देना है तो मेरा कत्ल कर दो तुम...
वैसे ही कई बस्ते दर्द के ढो रहा हूँ...
मैं निकालता हूँ, वक़्त मिलता नहीं...
रातों में जग कर, सुबह को सो रहा हूँ...
मेरी खामोशी भी समझा करो तुम...
हर वक़्त हसकर, मैं अंदर रो रहा हूँ...
करना है तो बेशुमार करो ये इश्क हमसे...
मैं फिर से अब पत्थर का हो रहा हूँ...
और तुमसे ना कुछ शिकायत हमें...
मुझे हर नाराज़गी पर लगता है, मैं तुम्हें खो रहा हूँ...

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13 SEP 2019 AT 14:44

आग लगाने को तो शहर बेकरार है...
बुझाने को एक परिंदा नज़र नहीं आता...

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8 SEP 2019 AT 18:15

अब मेरे यारों को नए मिल गए हैं...
अब वो हमारी कदर भूल गए हैं...

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3 SEP 2019 AT 22:25

जिंदगी से इश्क अब किया जाता नहीं...
बस ये दर्द अब मेरे जहन से जाता नहीं...
क्यूँ लगा दिये है मैंने इल्ज़ाम लोगों पर...
ये बोझ है जो अब दिल से जाता नहीं...
मेरी रुख़सती हो मेरे जनाजे पर...
यहां पर कोई रूह किसी जिस्म को मनाता नहीं...
ये मौत क्यूँ रूठी है मुझसे, कोई पूछ के बताये...
बुलाने पर भी वो करीब आता नहीं...


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25 AUG 2019 AT 19:54

ख्वाहिश नहीं है मुझे किसी जिस्म की...
मैं खुद सिर्फ मेरी रूह से ताल्लुक़ रखता हूँ...

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