Dear बनारस
तुम्हारी गलियों में जीता हूँ
मैं ही तो शिव हूँ जो विष पीता हूँ
अस्सी की गंगा आरती की शाम हूँ
मैं लंका के कुहलड वाली चाय का नाम हूँ
मैं हर पल जलती वो मणिकर्णिका की आग हूँ
मैं बाबा विश्वनाथ पे लिपटा बशुकीनाथ नाग हूँ
रात की खामोशी में मौजूद हूँ
मैं सती के बैगर शिव का वजूद हूँ
मैं औघड़ सन्यासी नागा साधु हूँ
मैं फैकल्टी के टंकी पे लगा मधुमखी का मधु हूँ
मैं कुंदन और ज़ोया का बनारस हूँ
मै बिश्मिल्ला खान का शहनाई वाला पारस हूँ
मैं साजन राजन मिश्र के गले का सुर हूँ
मैं खड़ा बुद्ध की शान्ति सन्देश का वो नूर हूँ ।
मैं हर पल मरता हूँ
मैं ही तो शमशान में जलता हूँ ।
मैं गंगा के नौका की मस्ती में हूँ
मैं मुरारी की दोस्ती में हूँ ।
मैं हर अधूरी प्रेम कहानी में शामिल हूँ
मैं अब शिव के वैराग के काबिल हूँ ।
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