लिबास ओढ़े किस्से
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कहानियां दो तरह की होती हैं,
एक जो हम ढूंढते हैं
एक जो हमें ढूंढते चली आती हैं.
लेकिन कहानियां होती क्या है?
बातों का लिबास ओढ़े मुसाफिर
जो एक जगह से दूसरी जगह
अपना पता बताते फिरते हैं.
कहते हैं लोगों से उनके मन की बातें,
और साथ ही और भी किससे.
पर क्या कहानी के खत्म हो जाने से
किस्सा खत्म होता है?
किसे पता कहानीकार को कहानी का किस्सा कहां मिला?
किसी और किस्से में?
या फिर वही किस्सा किसी दूसरी कहानी में?
किसे पता कि हीर-रांझा जैसा काम था
या फिर था आम जैसा बेनाम.
ऐसा था भी क्या,
कि कहानीकार के दूर होने पर भी
किस्से की आहट गुमनाम ना हुई?
खोज की तो है यह एक,
उन लाखों छुपी कहानियों का
कुछ जो हम ढूंढते हैं
और कुछ वह जो हमें ढूंढते चली आती हैं.-
One fine evening when I was sitting in a hall
I heard wailings of people about the joint family's call,
With shivering feet I climbed a flight of stairs
Only to spot a close one no more mortal resting beside Mr. Holl.
I went around hugging the ones I adore
'You won't even look at him', my inner soul swore,
Yet we locked eyes when I stopped to catch a breath
And I sensed the familiarity from the time I wasn't even four.
He smiled at himself thinking of all the roles he played
Recalling how peace left first leaving behind a family betrayed,
Absence of obedience was the final thing he remarked
Leaving me stunned at how intoxication made things fade.
I questioned his existence and the ways he was deployed
He scoffed at me and said he wasn't a droid,
Before leaving he pointed, 'A clear vision is the only way out,
And that's one more being who could've chosen me to avoid.'-
लोगों के बीच कभी-कभी
मूक-बधिर दिख जाते
कुछ है देखकर इशारा करते
कुछ है बातें बनाते.
सपने बुनना उन्हें भी है आता
बिना सुने-बोले रिश्ते बनाते
जो वंचित नहीं किसी से भी उन्हें हम
विकलांग क्यों बुलाते?
ईश्वर के निर्माण पर
शक हम कैसे कर जाएं
पर सही गलत में फर्क है जो
वह हम क्यों ना बता पाए
नेत्रहीन और श्रव्य वाच्य से
वंचित पर क्यों उंगली उठाते?
आत्मीयता की कमी है जिसमें
विकलांग उसे क्यों न बुलाते?-
ईश्वर ने सृष्टि की रचना में
कमियां कई है छोड़ी
कुछ में हिम्मत प्रेम भरपूर
और कुछ में आत्मीयता दी है थोड़ी.
राह चलते व्यक्ति के हाथों में
सहारा है हम पाते
कुछ उसे छेड़ते लूटते
कुछ है अंधा बुलाते.
बंद आंखों से लोगों के
मन को वे पड़ जाते
नेत्रहीन पर शक्तिवान को हम
विकलांग क्यों बुलाते?-