Divanshu Goyal  
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Joined 7 April 2017


Joined 7 April 2017
16 JAN 2021 AT 21:42

ये बेजुबान शामें, गुफ्तगू का हुनर जानती हैं,
ये मयकशी रातें, पैमानों का सफर जानती हैं,
सर्द कितनी थी पिछली रात में बरसी चांदनी,
ये सहरा ही, शबनम का असर जानती हैं।

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18 JUN 2020 AT 12:43

वहां एक नीम के पेड़ के नीचे,
जो एक छोटा सा घर है,
वहां मेरी एक ग़ज़ल रहती है,
वो जब बाल संवारती है,
मेरा काफ़िया संवरता है,
उस नरम घास पे पायल की छनछन,
कानों में घोलती हो मधु जैसे,
बारिश की बूंदों से कभी भीगे जो वो,
तितली की तरह उसका रंग निखरता है,
सर्द रातों की जादूगरी क्या कहूँ,
बन के शबनम माथे पे मोती चमकता है,
हर लफ्ज़ उस ग़ज़ल का,
इत्र में डूबा रहता है,
लय में गाता हूँ जब मैं उसे,
मेघ आकाश में बांसुरी बजाता है,
हर शेर उस ग़ज़ल का कातिल है,
खुद पढता हूँ, रोज़ मर जाता हूँ,
और कभी ख्वाबों में उसे पढ़ने के लिए,
उसी नीम के पेड़ के नीचे सो जाता हूँ,
उसी नीम के पेड़ के नीचे सो जाता हूँ,
A memory from 18 June, 2014...

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20 MAY 2020 AT 11:01

अरमानों की शाम धुंधली नज़र आती है,
ज़िन्दगी बेखुदी में चलती चली जाती है,
रेशम के पिघले धागे उलझते हैं पैरों से,
लड़े थे कभी बचाने खुद को वो गैरों से,
ऐ वक़्त! अभी तेरा वक़्त है,
चौसर-बिसात सजा ले,जा,
रौशनी का वो क़तरा चुरा लूंगा एक दिन,
मोड़ दे बादलों का रुख इस ओर,
बारिश में भी घर बना लूंगा एक दिन,
सफर पे निकला हूँ मस्ती में,
ना राहों का डर, ना काटों का डर,
मंज़िल से पहचान बढ़ा ली है,
सीने में आग जला ली है,
हर बार गिरूंगा, हर बार उठूंगा,
हर बार गिरूंगा, हर बार उठूंगा।

Written on 20th May, 2015

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10 MAY 2020 AT 15:14

उस पीतल की थाली में,
रखे हुए कुछ,
चावल के दानों को,
बीनने की कोशिश करता हूँ जब,
माँ, तुम बहुत याद आती हो मुझे।

धो के, करीने से इस्त्री की हुई,
मेरे स्कूल की सफ़ेद शर्ट,
और आठवीं क्लास की सर्दियों में,
तुम्हारे बनाये उस स्वेटर को,
आज भी सोचता हूँ जब,
माँ, तुम बहुत याद आती हो मुझे।

तुम्हारे साथ रसोई में,
रोटियाँ बेलने की जिद और,
मेरे माथे पे तेरे कोमल हाथों का 'स्पर्श'
आज भी सोचता हूँ जब,
माँ, तुम बहुत याद आती हो मुझे।

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28 APR 2020 AT 1:15

कुदरत का अजब ये फसाना देख कर,
भूल कर बैठे उनका मुस्कुराना देख कर।

छिपाए नहीं छिपती है अब तबस्सुम उनसे,
वो शायरी हो गए हमें शायराना देख कर।

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23 APR 2020 AT 10:24

हटा लो नक़ाब अब कि लोग आरज़ू में हैं,
देखें कि चन्द्रकलाओं की आज तुम कौन तिथि में हो।

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12 APR 2020 AT 23:22

आंख टपकाते अश्क बेहिसाब से,
खबर थी या धुंआ था कोई,

एक दर से मांगी थी पनाह,
दीवार थी या कुंआ था कोई,

हो गई तबियत दुरुस्त सी अचानक,
दवा थी या दुआ था कोई,

आज तलक रोशन है गुलशन मेरा,
बहार थी या छुआ था कोई,

खेल बैठे आखिरी बाज़ी हम यूं ही,
जिन्दगी थी या जुआ था कोई।

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4 NOV 2019 AT 22:15

तेरे शहर से फक़त इतना सा करार था,
नुमाइश थी मेरी और तू खरीददार था।

फक़त- केवल

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3 NOV 2019 AT 21:36

वक्त गुजरता नहीं अब तेरी तस्वीर के सहारे,
बह रही हवाओं से अपनी खुशबू भिजवा दे।

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17 MAY 2019 AT 13:22

नसीम-ऐ-सहर में आज रवानी आई है,
लगता है फिर रुख़सार पे जवानी आई है।

नसीम-ऐ-सहर- Morning breeze
रवानी- flow,

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