अभी तो गुड्डे-गुड़ियों से खेलने की थी उम्र ,
पर कुछ शिकारी उसी के ज़िस्म से खेल गए......
गिद्धों से भी बदतर नोंच डाला उसका शरीर.....
हवस की वेदना में छिल गयी आबरू ,
सूख गया आँखों का नीर.......
काश उन भेड़ियों को तुझमे अपनी बेटी का अक्स
दिखता होता.....
तो, आज कोई बाप अपनी बेटी खोने का मातम न मना
रहा होता.........
- © Dimple Saini