पुरुष अपना रोना रोकते हैं , बेहिसाब रोकते हैं इसलिए नहीं कि
मर्द को दर्द नहीं होता .....
होता है, बहुत होता है लेकिन वो अपने आंसू रोकते हैं
ताकि वो घर की महिलाओं को संभाल सके। मग़र बुरे
मंज़र में जब पुरुष की आँखों से आंसू छलकते हैं, वो
फ़फ़क उठते हैं , जब वो रोते हैं तो उन तमाम औरतों
की चीखों के आगे ,उनकी दहाड़ों के आगे एक पुरुष
का रोना किसी भयावह प्रलय से कम नहीं .....
-