Dimple Saini   (© Dimple Saini)
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Nature lover 💕
Joined 9 January 2018


Nature lover 💕
Joined 9 January 2018
19 MAY 2021 AT 22:03

पुरुष अपना रोना रोकते हैं , बेहिसाब रोकते हैं इसलिए नहीं कि

मर्द को दर्द नहीं होता .....

होता है, बहुत होता है लेकिन वो अपने आंसू रोकते हैं

ताकि वो घर की महिलाओं को संभाल सके। मग़र बुरे

मंज़र में जब पुरुष की आँखों से आंसू छलकते हैं, वो

फ़फ़क उठते हैं , जब वो रोते हैं तो उन तमाम औरतों

की चीखों के आगे ,उनकी दहाड़ों के आगे एक पुरुष

का रोना किसी भयावह प्रलय से कम नहीं .....

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10 APR 2021 AT 21:18

जीवन का सबसे बुरा दौर आपको कई तरह की सीख देता है....

उनमें से एक ये भी है -

" आग का काम केवल जलाना नहीं , जगाना भी है "

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7 APR 2021 AT 15:34

अब ये पँख जो फैलाये हैं ,

ज़रा तुम उड़ने की कोशिश तो करो....

देखना तुम्हारी उड़ान के आगे एक दिन ये आसमां भी कम पड़ जायेगा .....

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31 MAR 2021 AT 19:14

एक वक़्त पर राहों में उलझे ज़रूर थे मग़र हम भटके नहीं,

अक़्सर मुसाफ़िरी से इश्क़ करने वाले

अपना रास्ता ख़ुद ही ढूंढ लिया करते हैं ....

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16 MAR 2021 AT 23:51

सभी कहानियाँ सच्ची हैं

झूठ तो केवल पात्रों के नाम बदल जाना है

या फिर जगहों या मज़हब का रूपांतरित हो जाना है...

कुछ कहानियों का वजूद अतीत की सुरंगों में ही गुम हो गया

कितनी ही कहानियां भविष्य की गोद में बैठकर सुनी जाएंगी

आज भी हज़ारों कहानियों में तड़प और चीख़ें दफ़न है

जाने कितनी ही कहानियां हम और तुम अपने भीतर छिपाये बैठे हैं

यथार्थ केवल इतना भर है - हर कहानी सच्ची है !

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2 FEB 2021 AT 0:47

मै लिखूंगी अपना सम्पूर्ण जीवन अक्षर दर अक्षर इन डायरी के पन्नों पर

और एक दिन इन कागज़ों के फाड़कर इस नीले आकाश को सौंप दूंगी

उन हज़ार टुकड़ों से बनेंगी हज़ारों कहानियां

तुम पाओगे

किसी कहानी में सिर्फ़ मेरी ख़ामोशी होगी

तो किसी में केवल हंसी ठिठोलियां होंगी

मेरी लिखी हर कहानी के किसी क़िरदार में मेरी आत्मा की झलक होगी

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28 JAN 2021 AT 16:20

तुम भीड़ से क्यों डरती हो ?

(in Caption)

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13 JAN 2021 AT 12:34

मेरे जीवन में तुम्हारा आना शब्दों के नए अँकुर फूटने जैसा था

मेरे भीतर से हर पल एक नई कविता की कोंपल निकलने लगी

अपनी आत्मा की एक-एक बूंद से मैंने उन्हें सींचा है

तुम्हे मालूम है ?

हर अधूरी कविता की उस परछाई के पहले अक्षर पर तुम्हारा नाम लिखा है

मुझे नहीं मालूम ये अधूरा कहना सही है या नहीं

मग़र मेरा मौन भी तुम्हारे द्वारा पढ़ लेना मेरे लिये काफ़ी है

हर बार की तरह समझदारी की शर्त में तुम बाज़ी मार जाते हो

और

बेबाक़ी से भरी पागलपन की सारी शर्तें फिर से अधूरी रह जाती हैं

ना तुम जीत पाते हो, ना मै हार मानती हूँ....

देखो ना फिर एक अधूरी कविता ख़ुद ब ख़ुद लिखी गई

सिर्फ़ तुम्हारी ख़ातिर !

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5 JAN 2021 AT 13:15

सच कहता है वो - ग़र ये दुनिया मिल भी जाये तो क्या ?

इसी ख़्याल में आज मेरे अंतर्मन से आवाज़ आई-

ये आसमां भी मिल जाये तो क्या ?

ग़र मेरी पीठ पर पँख भी उभर आये तो क्या ?

ग़र मेरे सारे सवालों के जवाब भी मुझे मिल जाये तो क्या ?

सच कहूं तो सबसे बड़ा सवाल ही ये क्या है...

और हाँ

मै इस " क्या " के जवाब की खोज में ही निकली हूँ !

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3 JAN 2021 AT 23:13

इनदिनों .....
( in Caption )

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