कर रही हो जो रकीब से , वो मोहब्बत है क्या , या मेरी अब भी तुमको ,थोड़ी ज़रूरत है क्या , मर्ग को जाते जाते मै लौट आया हूं , ख़त में लिखा है " क्यों आए हो " , मेरा जाना इतना ज़रूरी है क्या ।
खामोशी को इत्र सा खुद पर लगाएं हुआ है , घंटो बतियाने वाला , मेरा यार रूठा हुआ है , पूछूंगा एक दिन , क्या हाल है मेरे चांद का , पर कुछ वक्त लगेगा, एक तारा यहां भी टूटा हुआ है ।
शिकस्त ए-ज़िन्दगी को मै अभी मात नहीं मानता , मैं इश्क़ करता हूं इसमें हार-जीत नहीं जानता , मेरे बुजुर्गो ने देखा है दरिया जलते हुए लहू में , मै धर्म को तो मानता हूं लेकिन हिन्दू - मुसलमान नहीं जानता ।
क्या इकरार , क्या इज़हर , क्या चाहत , ईमान नहीं जानता , मै खुद ही से इश्क़ सीख रहा हूं मोहब्बत में बेवफ़ाई नहीं जानता । तू चला तो चला , तू रुका तो थमा ., फिर तू गया और लौटा ही नहीं , मैं अब जाऊ तो जाऊ कहा , घर पहचानता हूं लेकिन पता नहीं जानता ।