24 JUN 2018 AT 12:45

कभी रास्तों पे मिला मुझे, कभी मंज़िलों में शुमार था,
जो चढ़ा था मुझ पे सर-ए-सफ़र, वो मुरव्वतों का ख़ुमार था.
मेरे हाल पर मेरा बस चले, मुमकिन न ये किसी हाल में,
कभी मुतमइन था ग़मों से मैं, कभी सुख़ से भी बेज़ार था.
वो जो शख़्स मेरे करीब था, उसे वक़्त ले के कहाँ गया,
बस हफ़्ते भर की है ज़िंदगी, उस में वो ज्यों इतवार था.
करता था बातें ख़ुलूस की, और प्यार उसकी ज़ुबाँ पे था,
वाक़िफ़ न था दुनिया से वो, या फिर बहुत बीमार था.
अब तो तिजारत है ग़ज़ल, पैसा ही बस ईमान है,
पर मैं हमेशा यों न था, मुझ में भी इक फ़नकार था.

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