Dhruv Thapa   (Thought Process)
27 Followers · 6 Following

read more
Joined 16 December 2017


read more
Joined 16 December 2017
7 FEB 2022 AT 20:03

क़ायनात की साज़िशें भी कमाल हैं,
न जाने कब इम्तेहान ले ले, बिन इत्तिला करें !

-


5 FEB 2022 AT 21:52

"I put down the pen and was about to walk. A dead dropping silence occupied as an aftermath of a storm outbreak. Breaking in the blues, something crept into my ears, "What else you want to me do to prove my affection". I replied as in clearing my way, "Sometimes you have to do certain things to make things certain. Find one." "Can't you feel it"? I whispered, "if only it was there! ".
Walking away was like making your way through a scarcely spaced lane, but it was the only way to walk through the chasm."

-


4 FEB 2022 AT 9:34

कागज़ के इन टुकड़ों में नजाने ये कैसी काबिलियत हैं,
रंग भले फीका पड़ जाए, ये यादें कभी फीकी नहीं पड़ती।

-


4 FEB 2022 AT 9:31

यूँ ही रस्ता चलते मुझसे सवाल किया,
किसी ग़ैर ने, जो अपना सा लगा .
या यूँ कहो एक अपना जो ग़ैर हो गया।
चंद मिनटों की उस मुलाकात में ये क्या हिसाब हो गया,
"पहचाना नहीं "? सुन के मैं बदहवास हो गया।
मैं भी सोच मे पड़ गया , जवाब क्या दू इस जाने पहचाने से अंजाने को.
पहचान जिसने खो दी हो खुद की, खुद ही ,
पहचानू अब मैं कैसे, ऐसे किसी बेगाने को.......?

-


1 FEB 2022 AT 9:47

Sometimes the gravest of all things in this world is a sacrifice and sometimes the bravest of hearts shatters, merely with the idea of it.

-


27 JAN 2022 AT 22:17

आओ आज दो पल बैठ कर, कुछ गुफ़्तगू कर ले,
कुछ थोड़ा सुन ले, कुछ थोड़ा समझ ले......
इस मौसम-ए-सर्मा को दिल में उतार लें।
हिज्र के मौसम की इस पहली सुबह,
क़िताब के उन सक्त पन्नों में दबे उस कुम्हलाए फूल से, सुन ले उस दिन की वो दास्तान....
जो दबी की दबी रह गई.
घंटों ख़ुद की आँखों में देखते हुए, आओ आज पूछ लें आइने से वो पहेलियाँ,
जो अनसुलझी ही रह गईं।
चलो घूम आए उन बेज़ार सड़कों पर, कभी जो तेरे-मेरे कदमों की आहट से गूंजती थी,
खुशबूओ के दरमियाँ बैठ, कैसे मान ले, कि दिल की ज़मी पर इस बार पतझड़ नें दस्तक दी है,
मान भी कैसे ले कि बहार की रूत उसके जाने के साथ जा चुकी हैं....
प्यार में बार बार कुचले जाने वाला फूल, क़िताब मे पड़े रहने पर, आज भी इंतज़ार की खुशबू से बरकरार हैं।

-


27 JAN 2022 AT 21:12

बेअदबी भी तुम्हारी, अहा क्या खूब हैं,
हाथ छोड़ के फिर साथ चलने को कहते हों…....

सुना है, कि गँवारा अब हम नहीं तुम्हें,
कि देखना भी मंज़ूर नहीं....

फ़िर क्यूँ मनवाने की ज़िद लिए तुम आज भी,
रूठने का ढोंग करते हो..........

-


27 JAN 2022 AT 9:35

ए नशुक्रे, तेरी बेरुखी पर भी हम कुर्बान हो गए....
तूने यू जो देखा पलट के,
हम उसपे भी जान -निसार हो गए....

-


14 JAN 2022 AT 2:04

जब बुद्धिजीवी मौन धारण कर ले,
तो मूर्खों से इज्ज़त की क्या उम्मीद रख सकते हैं

-


6 JAN 2022 AT 23:26

Going down the memory lane is so dreamlike, as if you are reliving those moments. Time machines do exist!

-


Fetching Dhruv Thapa Quotes