उसकी नज़रों ने मुझे कहा बहोत कुछ
मगर मिल के कभी कुछ सुनाया ही नहीं
मेरा इश्क यूं तो मुकम्मल हुआ, मगर हुआ भी नहीं...
खुशबुओ को उसकी आदत बना ली मैंने
पर कभी उनको छुआ तो नहीं,
उसने कांधे पर मेरे सर रखकर रोया,
लेकिन खिलखिलाया नहीं,
रात की चांदनी धूप बन गई सुबह की
बस बातो बातो में,
तेरे बालो को मैंने खोला भी नहीं?
मेरा इश्क यूं तो मुकम्मल हुआ, मगर हुआ भी नहीं...
है महोब्बत है महोब्बत कहते रहे तुझसे कानो में,
फिर भी ज़माने को लग गई खबर
और तुझे पता भी नहीं,
इंतज़ार ने मारा सदियों मेरी हकीकतों को,
और मैने एक पल तेरे प्यार का
ख्वाबों में भी जीया नहीं...
मेरा इश्क यूं तो मुकम्मल हुआ, मगर हुआ भी नहीं...
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