जाने कौन कहा होगा, ये भी कोई सोचता होगा,
रात के इस प्रहर पर, क्या हर कोई सो रहा होगा...
बिते दिनों को कर याद, क्या कोई रो रहा होगा,
या अपने आज पर, क्या हर कोई हँसता होगा...
सपने जो थे बुने, क्या कोई जी रहा होगा,
या जिम्मेदारियों के बोझ तले, क्या हर कोई सिमटा होगा...
किस्से थे जो कई, क्या कोई रंग भरता होगा,
या खुद ही अपने किस्सों में, क्या हर कोई लिपटा होगा...
जिंदगी मतलब क्या, क्या कोई जानता होगा,
या उसे समझने में, क्या हर कोई मरता होगा...
जाने कौन कहा होगा, ये भी कोई सोचता होगा,
रात के इस प्रहर पर, क्या हर कोई सो रहा होगा...
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