चलो क्यू ना मिलो दूर चले
इस भीड़ भाड़ से परे, इस दौड़ भाग से परे
चलो क्यू ना मिलो दूर चले
इस रस्मो अदब से परे, इस जाति धर्म से परे
चलो क्यू ना मिलो दूर चले
इस शोर शराबे से परे, इस दो मुहैया दुनिया से परे
चलो क्यू ना मिलो दूर चले
इस बंद पिंजरे से परे, इस खून उगलते संसार से परे
चलो क्यू ना मिलो दूर चले
इस बनावट से परे, इस सजावट से परे
चलो क्यू ना मिलो दूर चले
इस अन्याय से परे, इस प्रयाय से परे
चलो क्यू ना मिलो दूर चले
जहा तुम हो जहा मैं हूं, जहा दिन भी हो जहा रात भी
जहा दोपहर में शांति भी हो, जहा बगियानो में फूल खिले
जहा सुंगदित माहोल में हम दो मिले, जहा सुबह के सूरज की किरणों से ललाट
चमके
जहा घोर दोपहरी में तोता मैना मिले, जहा रात होते ही चांदनी से दर्पण चमके
चलो क्यू ना मिलो दूर चले
जहा तुम हो जहा मैं हूं
चलो क्यू ना मिलो दूर चले
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