आम आदमी. (सवैंधानिक मतदाता)
हर सुबह मुक्कमल सा निकलता है घर से
हर शाम अधूरा अधूरा सा लौट आता है
हौसलों की चमचमाती शमशीर लिये हाथों मे
निहत्थी जरूरतों के हर वार से हार जाता है
शहर मे गुजरा मिठाई की बडी बडी दुकानो से
माँ ने बाँध के दी जो रोटी उसमे ही मिठास पाता हैं
ख़्वाहिश हर चौराहे पे राह रोके खडी दिखती है
फखत चुपचाप पतली गली से निकल आता हैं
सुना है उनके गोदामों मे भरा सड़ गया अनाज
इसकी आदत है रोज कमाता हैं रोज खाता हैं
सियासतें कभी विकास करें न करें समाज का
संवैधानिक मतदाता है हर चुनाव मे वोट देने जाता है
- 'धर्मी'