मेरी तबाही का मंज़र भी क्या खूब सजा था,सामने खड़ा था महबूब और मेरा जनाज़ा चला था,आयी थी वो आँखों में नमी लिए,कोई जाकर बताये उसे की,मेरा कत्ल तो उसकी बेरुखी ने किया था©Devika parekh - तरपल
मेरी तबाही का मंज़र भी क्या खूब सजा था,सामने खड़ा था महबूब और मेरा जनाज़ा चला था,आयी थी वो आँखों में नमी लिए,कोई जाकर बताये उसे की,मेरा कत्ल तो उसकी बेरुखी ने किया था©Devika parekh
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