2 MAR 2018 AT 8:37

ज़िन्दगी यूँ ना मल्हम लगा ये घाव खुला छोड़ दे
बंजर से आशियाने पे तू बारिश करना छोड़ दे
दे तो और घाव,इंसान को घाव से ही सिख दे
मत दे किसी सहाय की आहट,ज़िन्दगी नाम के हर पृष्ठ पर हमें मुश्किलो के साथ छोड़ दे
सीखता है कोई दुःखो से ही सुखों से सिफारिश करना छोड़ दे।
कभी देखा है इच्छाओं को सिकुड़ते हुए?
वोही तो देती है घाव, इसी लिए तू घाव भरना छोड़ दे ये मल्हम लगाना छोड़ दे।

- Dev