उसकी बाहों के सिवा कहीं आराम नहीं,
वो ना मिले तो, कोई सवेरा कोई शाम नहीं।
मुहब्बत, खुदा का हमें तोहफ़ा है,
इस रिश्ते का जहां में, कोई दाम नहीं।
दोनों साथ ही अच्छे लगते है,
जैसे राधा के बिना,श्याम नहीं ।
वो ज़िक्र, फिक्र हर जगह करता है,
ये रिश्ता, इस जहां में बेनाम नहीं।
पूछते है क्या करती है 'सहर'
उसे निहारने के अलावा, कोई काम नहीं ।
© सहर
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