पौधों पर न दोष मढ़ो,बीजों की भी तो बात करो,
दर्पण सबको दिखलाओ,पहले खुद से शुरुआत करो।
माना पीढ़ी बदल रही पर,सोचो कितने हम बदले,
खुशियों की परिभाषा बदली,तरह-तरह के ग़म बदले,
पढ़ो,पढ़ो हमने सिखलाया,मोह-माया से दूर किया,
सामाजिक न बनने को हमने उनको मजबूर किया।
ताने कस -कसकर अब उनके बदतर न हालात करो।
दर्पण सबको दिखलाओ,पहले खुद से शुरुआत करो।
अपनी इच्छा उन पर लादी,उनका बचपन छीन लिया,
बिल उनके लालन का देकर वापस यौवन छीन लिया।
ट्यूशन,विद्यालय है जीवन,हफ्तों होती बात नहीं,
चीख -चीखकर हम कहते नव पीढ़ी में जज़्बात नहीं।
वज़्न तिजारत का देकर के दिल पर न आघात करो।
दर्पण सबको दिखलाओ,पहले खुद से शुरुआत करो।
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