लिखना मेरा छूट गया,
जो खुद से किए वादे थे,
उन पर अमल करना छोड़ दिया,
शायद जीना मैंने छोड़ दिया,
हां छोड़ दिया,
भरी थी आंखें और रो रहा था,
लेकिन आंखों से आंसू कहीं सुख गया था,
अंदर ही अंदर मै लड़ रहा था,
तनाव से मस्तिष्क मेरा फट रहा था,
उल्टे पुल्टे ये कचड़े से ख्याल,
क्या करू इनका जो मचा रहे थे बवाल,
क्या करना है मुझे इसका होश नहीं था,
अंदर ही अंदर कुछ अधूरा पड़ा था,
रो रही थी मां और मै स्तब्ध खड़ा था,
सब मेरे कारण हुआ ये सोच रहा था,
घिरा रहता मै इन ख्यालों में था,
क्या दिन क्या रात सब एक हो गया था,
फिर एक दिन जागा तो सवेरा हुआ,
पसीने से लथपथ मेरा जिस्म हुआ,
योग ध्यान से शुरू दिनचर्या हुआ।।।।।।
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