Deepak Arya   (Chirag Kumaoni)
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A Mechanical Engineer from IITK who equally loves writing.
Joined 1 August 2017


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26 MAR AT 19:38

आजकल आस्तीनों से सांप अक्सर निकलते है
इसलिये हम अपनी परछाई से हाथ मिलाकर चलते हैँ

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26 MAR AT 19:37

आजकल आस्तीनों से सांप अक्सर निकलते है
इसलिये हम अपनी परछाई से हाथ मिलाकर चलते हैँ

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22 MAR AT 21:50

दिन भर समाचार में देखो प्रजातंत्र को नीलाम होते हुए
विपक्ष के हाथ में हथकड़ी अब दिखती है आम होते हुए

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22 MAR AT 7:50

जिस जहान को छोड़कर हमने नयी शुरुआत की
मंजिल पर दोबारा हमने फिर उसी से मुलाकात की

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18 MAR AT 19:30

सब रिश्ते जला कर तुम अंगारों पे चलकर आ गये
पांव पे छाले थे तुम होंठों पे जाम लगाकर आ गये

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15 MAR AT 23:10


लोगों से भरी है ये तंग गली ख्वाबों की
यहाँ कौन दे पाया है कीमत अपनी मुरादों की

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11 MAR AT 21:54

इश्क़ की गलियों में खरीदा ऐतबार नहीं जाता
साहिल पे बैठने वाला कभी उस पार नहीं जाता

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9 MAR AT 22:10

सच सुनकर नाराज़ होना ज़माने का दस्तूर हैँ
हम भी क्या करें हम अपनी आदत से मजबूर हैँ

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3 MAR AT 20:18

हम रेगिस्तान की धूप में नंगे पैर चल कर आयें हैँ
फूलों की सेज वाले क्या जाने हम क्या सहकर आयें हैँ

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3 MAR AT 0:17

सब्र का फल कितना मीठा था ये पता करने में निकल गयी उम्र
हम वक़्त की रेत को पकड़ते रहें और हाथों से फिसल गयी उम्र

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