25 MAR 2018 AT 6:50

ये यादें बना उसको जीना, हमें पागलपन सा लगता है,
आवाज बना उसको रखना, सुनसान रातों की चीखों सा लगता है,
महज प्यार का सफरनामा, जो काटा था उनसे,
रुक कर ,उसे उम्र भर ठहरना, किसी मुसाफ़िर सा लगता है,
ना जाने क्यों वो याद आते हैं हमें,
कभी पढ़ लूं अगर ,किसी शायर की कलमगारी,
तो वो याद बन सूखे बीहड़ों में पानी की छीटों सा लगता है ,
कोशिश की थी उसे ना याद करने की ,
एक नये प्रेम का धागा पिरोने की ,
नये लबों पर उसके मिठास कि मिश्री ,
एक याद बन फिर लम्हा कुरेदने लगता है ,
चाहूँ अगर बहुत फिर भी, तुझे पूछ नहीं सकता ,
कि क्यों ना तू जीने देता है , ना तू मरने देता है
ना खुलकर मुझे जालिम तू हंसने देता है
कदम रोक देता हूँ ,तेरे चेहरे की खुशी देखकर
ना समझ नहीं, तुझे नई राहों पर चलने देता हूँ

फिर याद बना , उसको मेरा जीना पागलपन सा लगता है


- @दीपक बिष्ट