"कर्म"
"कर्म धर्म से ऊपर होता,
धर्म, कर्म से ही पलता।।
कर्म जीवन के लिए जरुरी,
इसे समझ ना तू मजबूरी।।-
उन्नीस सौ सात सताईस सितंबर ,
भगत सिंह अवतरित हुए।
बारह वर्षों में बारह मील चलकर ,
जलियांवाला देख वह दुःखित हुए।
जलियांवाला ने भगत के मन पर ,
बहुत ही छोड़ा गहरा छाप ।
केंद्रीय सांसद पर बम फेंककर ,
अंग्रेजों के लिए बने अभिशाप।
निर्मित कर नौजवान भारत सभा,
उन्नीस सौ अठाइस में सांडर्स को मारा।
दो वर्ष तक जेल में रहकर ,
अपनी भारत मां को तारा ।
ऐसे वीर को शत शत नमन ,
करते हैं सब भारतवासी ।
अमर हुए अपने कर्मों से ,
बाइस वर्ष में ही स्वर्गवासी।-
मैं सब कवियों से कहता हूं,
सम्मान की तू न सौदाकर ।
गर राष्ट्रप्रेम में मरना हो,
सम्मान सहित तू रख दे सर।
तू देखी देखा करके मत ,
कवियों पर आँच को आने दे।
शिव सम गरल को पी करके,
लेखनी का मान बढ़ाने दे।
मेरे इस जन्म दिवस पर तू,
प्रण कर धनपति राय होने का।
फोटो में फटे जूते पर भी ,
संदेश देते हरदम हंसने का ।
निराला ने कभी न समझौता की,
जीवन बिताई फक्कड़ता में ।
पर झुके नहीं धन के आगे ,
अभाव के साथ गए अकड़ता में ।
यदि बनना है तो इन सम बन,
खाना पड़े भले शकरकंद ।
वरना कलम को रख दे तू,
बनाओ मत चापलूसी का छंद।
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"हिंदी के लिए दो दबाएंगे जब तक "
हिंदी भाषण में रहेगी तबतक,
हिंदी के लिए दो दबाएंगे जबतक।
केवल बातों से कुछ नहीं होता,
हिंदी को जो बोझ बना ढोता।
यह बोझ बनी ही रहेगी तबतक,
हिंदी के लिए दो दबाएंगे जबतक।
संसार में सर्वाधिक बोली जाती,
फिर भी सम्मान को तरसती रहती।
इस भाषा का अपमान है तबतक,
हिंदी के लिए दो दबाएंगे जबतक।
यह दिवस मानने से अच्छा होता,
सबकी भाषा में सिर्फ हिंदी होती।
इसके उत्थान की जरूरत टबतक,
हिंदी के लिए दो दबाएंगे जबतक।
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"शिक्षक दिवस"
छात्र राष्ट्र के होते भविष्य,
छात्रों को गढ़ते शिक्षक।
छात्र का गढ़ना राष्ट्र का गढ़ना,
इसलिए महान होते शिक्षक।
सर्वपल्ली ने पल-पल लगकर,
शिक्षक-शिक्षा में किए सुधार।
राष्ट्रपति का पद वो पाकर ,
शिक्षक गण का किये उद्धार।
मानव मंजिल नहीं पा सकता है,
बिन शिक्षा गीत न गा सकता है।
अपने अनुभव से कहा उन्होंने,
चालीस वर्ष खुद पढ़ाया जिन्होंने।
शिक्षक का महत्व सर्वोपरि जग में,
इन्हें सम्मन दो अपने पग-पग में।-
कोरोना
मास्क पहनना भूल न जाना,
खाकर ही टीका लगवाना।
बना के रखना दो गज दूरी,
नियम का करना पालन पूरी।
कोरोना से हम तभी बचेंगे,
बार-बार जब हाँथ धुलेंगे।-
आज प्रेम रह गया दिखावा,बिन सोचें देता पछतावा।
इसलिए सोंच कर प्रेम करो , बर्ना जैसा किये भरो।
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"पितृ दिवस"
पिता ही छाया पिता ही धूप,
पिता प्यार है पिता सूप।
पिता पुत्र का देवदार,
पिता सख्त भी पिता उदार।
पिता मित्र है पिता गुरु है,
पिता के बिन ये धारा मरु है।
पिता गर है तो पुत्र निश्चिंत,
सर पर हाथ डर नहीं किंचित।
पितृ दिवस तो पावन है,
पुत्र के लिए तो सावन है।
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"मिल्खा सिंह राठौर"
जन्में उन्नीस सौ उन्तीस में,
गोविंदपुरा पाकिस्तान में।
उन्नीस सौ अंठावन से जीत शुरू कर,
कई स्वर्ण जोड़े,देश के सम्मान में।
दौड़ में उड़-उड़,दिखा-दिखा कर,
पाए "उड़न सिख "का नाम।
जून अठारह को असली उड़ान पर,
निकल अमर कर गए नाम।
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विश्व पर्यावरण दिवस
आक्सीजन प्लांट के लिए,
वृक्ष बेचारे काटे जा रहे।
पर्यावरण रक्षा के लिए,
काव्य बड़े रचे जा रहे।
बातों से हम आक्सीजन को,
मौखिक संग्रह करते जा रहे।
आज कोरोना ने बता दिया,
हम अपना जीवन उजड़े जा रहे।
हम बड़ी विल्ड़िंगों में खुश हो कर,
विटप लगाना भूलते जा रहे।
क्या फैक्ट्री आक्सीजन दे सकता है,
आक्सीजन प्लांट बनाये जा रहे।
अब भी सचेत हो जा हे मानव!,
क्यों संकट में जीवन डालते जा रहे।
प्रण करो हर,खुशी पर वृक्ष लगाएंगे,
तभी कह सकते,हम इस सृष्टि को बचाये जा रहे।-