24 NOV 2017 AT 21:40

कुछ गुमसुम अंधेरे हैं
सन्नाटे जो बहोत गहरे हैं
शोर होता है बेहद आसपास
सुनो तो ख़ामोशी, देखो तो सिर्फ अंधेरे हैं

क्यों ज़िन्दगी आखिर ख़ामोश इस कदर है
क्यों हर मंज़र बस रेत बंज़र है
क्यों कोई सुन नही लेता बनकर हमदर्द
एक हाथ दोस्ती का, कुछ दर्द पर मरहम

चले जाते हैं जो वो कायर क्यों हैं
उनकी ज़िंदगी के गम तुमने देखे कब है
कह तो देते हो कि वो बुझदिल हैं
तुममे वो सन्नाटे सुनने का दम है?

- Chitra Pachouri